मेरे हुजरे में उसकी यादों के सिवा कुछ नहीं,
ए मेरे इश्क़ के पंछी, मेरे घर में वीरानी के सिवा कुछ नहीं।
मोहब्बत उसके हिज्र के सिवा कुछ नहीं,
उसके बिना ये ज़िंदगी, मौत के सिवा कुछ नहीं।
कितने ख़्वाब दिखाती है किताब-ए-इश्क़ की,
मगर वो टूटे हुए ख़्वाबों के सिवा कुछ नहीं।
रोते क्यूँ हो, ऐ ज़िंदगी वालो,
वो भी तो एक लड़की के सिवा कुछ नहीं।
सच यह भी है, इन सियाह रातों में,
मेरे पास लफ़्ज़ों के सिवा कुछ भी नहीं।
तोहफ़ा तुम को बेवफ़ाई का देने के लिए,
मेरे पास अश्कों के मोती के सिवा कुछ नहीं।
लेखक :- लक्की राठौड़
संपर्क :- kahanianugoonj@gmail.com