वो बाग़ीचे में खिला एक फूल, हमको देख कितना इतराता होगा,
हमसे नज़रें चुराकर देखो, किस तरह मंद-मंद मुस्कुराता होगा।
शहर में उसने किसी घर को अपना आशियाना बनाया होगा,
वहाँ चाँद भी अपनी रोशनाई में उसे तकता रहता होगा।
सुना है, उसने अब पौधों को पानी देना छोड़ दिया है,
शायद बाग़ के दरख़्तों ने भी अब खिलना छोड़ दिया होगा।
मैंने देखा, एक नशा है उस शख़्स की निगाहों में,
उसने इस शहर के कितने ही दिलों को बेकरार किया होगा।
आँसू हैं मेरी आँखों में, उसी बेवफ़ा की याद में,
उसने तो अब तक अपना ख़्वाबों जैसा इश्क़ पा भी लिया होगा।
जिस भी ख़ुश नसीब को तुम मिल गई होगी,
उसने तो ख़ुदा की इबादत तक को छोड़ दिया होगा।
लेखक :- लक्की राठौड़
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